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लेखनी कहानी -29-Sep-2023 फॉर्म हाउस

फॉर्म हाउस
भाग 4

हीरेन ने रिषिता का केस ले तो लिया था मगर उसे विश्वास था कि केस उसके पक्ष में नहीं है । जो सबूत अखबारों के माध्यम से जानने में आये थे , उनसे स्पष्ट लग रहा था कि खून रिषिता ने ही किया था । हीरेन को सबसे पहले रिषिता से मुलाकात कर वास्तविक स्थिति ज्ञात करनी थी उसके बाद वह इस केस की जांच कर सकता था । वह रिषिता से मिलने के लिए जेल में पहुंच गया । "हैलो रिषिता , कैसी हो ? मैं हीरेन जासूस तुम्हारा नया वकील" । हीरेन ने अपना परिचय देते हुए कहा । रिषिता बहुत हताश निराश लग रही थी । उसके चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी । आंखों में मौत का डर साफ साफ दिखाई दे रहा था । होठों पर पपड़ी पड़ी हुई थी । बाल सूखे हुए से बेजान से नजर आ रहे थे । चेहरा काला पड़ गया था । गाल पिचक गये थे और हड्डियां उभर आई थीं । 25 साल की एक लड़की 30-40 की लग रही थी । जब आदमी चारों तरफ से निराश हो जाता है तब वह एक जिन्दा लाश हो जाता है । रिषिता भी एक जिंदा लाश बनकर रह गई थी ।

एक फीकी हंसी के साथ स्वागत किया था रिषिता ने हीरेन का । हीरेन का नाम सुना था उसने पर उसे कभी देखा नहीं था । हीरेन के नाम में ही कुछ ऐसा जादू था कि उसकी आंखों में एक चमक आ गई । "क्या आप मेरा केस लडेंगे" ? उसने आश्चर्य से पूछा । उसे अभी भी अपनी आंख और कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था । "हां सचमुच" हीरेन ने मुस्कुराकर उसे हिम्मत देने का प्रयास किया । "सच में आप मेरा केस लडेंगे" ? रिषिता को अभी भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था । उसने हीरेन के हाथों को छूकर देखने की कोशिश की कि कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रही है ।

"मेरा विश्वास करो रिषिता , मैं सच में तुम्हारा केस लडूंगा" । हीरेन उसे विश्वास दिलाने का प्रयास करने लगा । "क्या वाकई आप मेरा केस लड़ेंगे" ? कहते कहते वह फूट-फूटकर रोने लगी । जब चारों ओर से उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं देती है और अचानक किसी के सामने प्रकाश पुंज प्रकट हो जाता है तो उसे उस पर विश्वास नहीं होता है । रिषिता का हाल भी वैसा ही हो रहा था । उसके रोने की आवाज सुनकर जेल के गार्ड दौड़कर वहां आ गये थे । "क्यों , क्या हुआ रिषिता ? क्यों रोने लगीं" ? हीरेन ने उससे पूछा । "सर मेरे पास आपकी फीस के लिए पैसे नहीं हैं । बिना फीस के आप मेरा केस कैसे लड़ेंगे ? यही सोचकर मुझे रोना आ गया था" । रिषिता सुबकते हुए बोली । "बस इतनी सी बात ! तुम मेरी फीस की चिंता मत करो । मेरी फीस मुझे एडवांस में मिल गई है । अब तो खुश हो" ? "सच ! किसने दी" ? उसकी आंखों में पहली बार हीरेन ने खुशी की किरन देखी थी । "वो कलकत्ता वाले आनंद बाबू हैं ना , उन्होंने दे दी । उन्होंने ही मुझे तुम्हारा केस लड़ने के लिए कहा था । क्या लगते हैं आपके आनंद बाबू" ? हीरेन उसे नॉर्मल करने के उद्देश्य से पूछने लगा । "वैसे तो वे कुछ नहीं लगते हैं पर वैसे वे बहुत कुछ लगते हैं" । नीची गर्दन कर के रिषिता बोली ।

रिषिता की बातें सुनकर हीरेन को जोर की हंसी आ गई । "तुम तो जासूसों की तरह बातें करती हो । आधी खुली आधी ढंकी । क्या तुम भी कोई जासूस हो ? खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे दो जासूस" । हीरेन ठहाका लगाते हुए बोला । "नहीं सर , मैं कोई जासूस वासूस नहीं हूं । मैं तो एक साधारण सी लड़की हूं बस" । रिषिता शायद कुछ संकोच कर रही थी बताने में । "अच्छा ! एक साधारण सी लड़की के लिए कलकत्ता से आनंद बाबू यहां लखनऊ क्यों आयेंगे ? कोई तो बात होगी तुम में जो तुम्हारे लिए उन्हें यहां खींच लाई ? हां, अगर तुम नहीं बताना चाहती हो तो मत बताओ , मैं फोर्स नहीं करूंगा" । हीरेन धीरे से बोला । "नहीं सर , ऐसी कोई बात नहीं है । आज मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है" । रिषिता थोड़ा शरमाते हुए बोली । उसके रूखे गालों पर हलकी सी गुलाबी छा गई थी । "गलती ! कैसी गलती ? क्या राज मल्होत्रा आनंद बाबू का कोई रिश्तेदार था जो आज तुम्हें उसे मारने की गलती का अहसास हो रहा है" । हीरेन ने जानबूझकर राज मल्होत्रा का आनंद बाबू से रिश्ता जोड़ दिया था जिससे रिषिता सही बात बता सके । "वो मुझे मालूम नहीं है सर । यदि आनंद बाबू का राज मल्होत्रा से कोई संबंध होता तो आनंद बाबू मुझे बचाने के लिए आपसे क्यों मिलते और आपकी फीस क्यों देते" ? "तो फिर क्या बात है" ? "बात यह है सर कि उनका एक बेटा है चिन्मय कुमार । वह मेरे साथ कॉलेज में पढता था । हम दोनों अच्छे दोस्त थे । मेरे प्रति चिन्मय के मन में कुछ और भी है , यह मुझे पता नहीं था । मेरा एक और दोस्त था लकी । मैं लकी से प्यार करने लगी थी । ये बात चिन्मय को पता नहीं थी और चिन्मय मुझे चाहता था , यह बात मुझे पता नहीं थी ।

एक दिन चिन्मय ने मेरे जन्म दिन पर मुझे एक किताब दी थी । मैंने वह किताब लेकर अपनी शेल्फ में रख दी थी । एक दिन मैं और लकी एक पार्क में बैठे हुए थे । मैं लकी की बांहों में थी । तब अचानक चिन्मय वहां आ गया और उसने हम दोनों को उस हालत में देख लिया । उसके बाद से उसने मुझसे कभी बात नहीं की थी । तब मैंने घर आकर वह किताब देखी थी । उसमें चिन्मय का एक पत्र था । तब मुझे पता चला कि चिन्मय भी मुझसे प्रेम करता है । मेरा लकी के साथ संबंध चिन्मय को शायद पसंद नहीं आया । लेकिन चिन्मय मुझे आज तक भुला नहीं पाया है। इसीलिए उसने आनंद बाबू को मेरा केस लड़ने को आपको देने के लिए फोर्स किया होगा" । कहते कहते रिषिता का स्वर भीग गया था । उसे चिन्मय के सच्चे प्रेम के दर्शन हो गये थे । उसने चिन्मय के प्रेम को तब पहचाना नहीं था । काश वह चिन्मय को समझ पाती । "यदि तुम और लकी दोनों प्रेम करते थे तो फिर ये राज मल्होत्रा बीच में कैसे आ गया" ? रिषिता को नॉर्मल देखकर अब हीरेन ने अपना काम शुरू कर दिया । "लकी एक अच्छा गायक कलाकार था । वह हैंडसम और स्मार्ट भी था । उसके चारों ओर लड़कियां मंडराती रहती थीं । पर लकी ने मुझे पसंद किया था । बस, मुझे इसी बात का घमंड था कि लकी मुझसे प्यार करता है । इसीलिए मैं एक अलग ही तरन्नुम में उड़ती रहती थी । ना पढाई और ना ही घर की चिंता । बस, हरदम प्यार के तराने रहते थे हम दोनों के बीच में । एक दिन मालूम चला कि लकी कहीं चला गया है । उसके बाद से वह आज तक नहीं लौटा है । उसके इस तरह से बिना बताये चले जाने से मैं टूट गई थी । उसके बाद उसने कभी कोई फोन नहीं किया । वह कहां है , क्या करता है , कुछ पता नहीं है मुझे" । रिषिता सांस लेने के लिए रुकी । "पर इसका राज मल्होत्रा से क्या संबंध है" ? हीरेन ने पूछ लिया । "मैं अकेली रह गई थी । टूट गई थी । एक दिन मेरी मुलाकात राज मल्होत्रा से हो गई । मैं एक रिसोर्ट में रिसेप्शनिस्ट का काम करती थी । उस रिसोर्ट में राज मल्होत्रा ठहरे हुए थे । उन्होंने मुझमें इंटरेस्ट दिखाया तो मैंने भी स्माइल से उन्हें कैच कर लिया । मुझे एक सहारे की तलाश थी जो राज मलहोत्रा पर जाकर रुकी । तब से मेरे और राज मलहोत्रा के संबंध बन गये । वे जब भी कोलकाता आते , उसी रिसोर्ट में ठहरते थे । इस तरह हमारी मुलाकात हो जाया करती थी । कभी कभी वे मुझे लखनऊ भी बुला लेते थे और उस फॉर्म हाउस में हम लोग खूब मौज मस्ती करते थे" । "क्या तुम्हें पता था कि राज मल्होत्रा विवाहित था" ? "पहले तो पता नहीं था पर एक दिन जब मैं उसके फॉर्म हाउस पर थी तब उसकी बीवी का फोन आया था । उस दिन मुझे पता चला था । मैं राज मलहोत्रा से बहुत नाराज हुई थी कि उसने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ? लेकिन राज में मनाने का बहुत जबरदस्त हुनर था । उसने मुझे राजी कर लिया कि वह अपनी बीवी को तलाक दे देगा और उससे विवाह कर लेगा । मैं उसकी बातों में आ गयी और उससे रिश्ता बनाये रखा" । "फिर उसे मारा क्यों" ? "मैंने नहीं मारा उसे" । रिषिता तुरंत बोल पड़ी । "फिर किसने मारा है उसे" ? "मुझे नहीं पता" । "तुम्हारे अलावा और कौन था वहां पर" ? "वो केयर टेकर था । पर उसे तो राज ने शराब लेने के लिए भेज दिया था" "तुम वहां से भागी क्यों" ? "दरअसल राज ने कॉफी की डिमांड की थी । मैं किचिन में कॉफी बनाने चली गई । जब मैं कॉफी बनाकर वापस लौटी तो राज मरे पड़े थे । उनकी लाश देखकर मैं बहुत घबरा गई थी और मैं वहां से भाग आई थी" । "संग में नोटों से भरा एक बैग भी लेकर गई थी" ? "नो सर , मैं कोई चोर उचक्की नहीं हूं । मैं तो केवल राज का मोबाइल लेकर गई थी" । "वह मोबाइल कहां है" ? "उसे तो गोमती नदी में फेंक दिया था" । "पर तुम्हारे घर से तो नोटों से भरा एक बैग बरामद हुआ है । वह कहां से आया" ? "वो मुझे नहीं पता" । "और ऐसी कोई जानकारी जो तुम देना चाहती हो" ? "नहीं । जितना पता था , सब बता दिया है । अब आप जानो और आपका काम जाने । आपके आ जाने से अब मुझे विश्वास हो गया है कि मैं अब जेल से बाहर आ जाऊंगी । क्यों है ना सर" ? रिषिता के चेहरे पर आशा का उजाला फैल रहा था । "व्हाई नॉट ! तुम एक दिन जरूर बाहर आओगी, देख लेना । ये मेरा वादा है । हीरेन का वादा । तुम्हारे लिए मैं जमीन आसमान एक कर दूंगा पर तुम्हें अवश्य बाहर निकाल कर रहूंगा" । हीरेन ने रिषिता को हिम्मत बंधाई और वकालतनामा पर उसके हस्ताक्षर लेकर वापस आ गया ।

क्रमश: शेष अगले भाग में श्री हरि 2.10.23

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2 Comments

hema mohril

11-Oct-2023 09:32 PM

V nice

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Punam verma

03-Oct-2023 08:22 AM

Nice

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